आशिकलेउड़ादुल्हन... जानने दुल्हनियाँ सजी-धजी बैठी रही दुल्हेके इंतजार में। अब आई कृष्ण बारात कि तब आई, इसी गुनताड़े में दुल्हन का मेक-अप जानने फीका पड़ने लगा। अधलेटी सी दुल्हन भविष्य के सपने हैसंजोये अर्धनिद्रा में चली गई। इधरदुल्हेकेपापा, चाचा और प्रकृति फूफा आपस में उलझे रहे कि दहेज की रकम का बँटवारा प्रकार कैसे होगा, किसके हिस्से में क्या आएगा। बारात के आगे कर्मकौन चलेगा, पहले किसका स्वागत होगा। इस सबका क्या न्यूनतम साझा अनुबंध बनालो। चाहता ___ उधर दुल्हन का आशिक़ घात लगाए कई दिनों से दुल्हन ही को उड़ाने की जुगत में लगा रहा। आशिक के संरक्षक भी बद्धजीव बेचैन रहे। ये सब किसी भी तरह सुंदर, सुशील और कमाऊ दुल्हन छोड़ना नहीं चाहते थे। लीकप्रूफ प्लानिंग भीतरहैभीतर तैयार करने लगे। दुल्हे के बड़बोले पापा, चाचा और का फूफ़ा में काफी जद्दोजहद के बाद बारात निकालने की सकता सहमति बनी। बारात के लिए बैंड-बाजे के जुगाड़ के पहले ही आशिक के घर वाले सतर्क हो गए। आशिक के संरक्षकगणों ने फौरन अपनी कुशाग्र बुद्धि को जागृत किया। होने तक मौका न दिया गया। सीधे मंडप में बिठाला और फेरे आधी रात को बड़े पंडित और फिर भोर छोटे पंडित से बात पड़वा दिए।लोजी हो गई शादी, अब क्या उखाड़लोगे।अब की। कहा सुबह आठ बजे फेरे पड़ने हैं, तैयारी करो। पंडित दुल्हे, उसके पापा, चाचा और फूफा को कौन समझाए कि जी ने भी नपंचांग देखा, नगुण मिलाए औरनही मुहूर्त देखा। शादी ब्याहमें ज्यादाखों-खों नहीं करनी चाहिए।दुल्हन सुंदर फौरन विवाह सामग्री एकत्रित की और विवाह के लिए तैयार के साथ-साथ कमाऊथी फ़ौरन विवाह रचाते। बाद में दहेज हो गए। सारा प्लान बड़े ही गोपनीय तरीके से बनाया गया। का माल आपस में बाँटलेते। दुल्हन की कमाई आगे थोड़ाकानों-कान किसी को खबर न हुई। सिर्फ आशिक़ से कहा थोड़ा नोचते रहते। आपस की चों-चों में दुल्हन भी गई और गया, पुरानी शेखानी पहनकर फटाफट दूल्हा बन जाओ, कमाई भी गई। अरे अकूल के दुश्मनों इतना तो सोच लिया दुल्हन उठाने चलना है। होता कि इसके पहले भी कई राज्यों के दूल्हों को दुलत्ती पड़ी जोइस सुबह जैसे ही दुल्हन के घर का किवाड़खुला। वैसे ही है उसी से सबक़ले लेतेमौजूद आशिक़ दूल्हा बन पंडित लेकरधमक गया। दुल्हन को फ्रेश -ज़हीर अंसारी स्थित नासानेबृहस्पतिकेचांदपरखोजनिकालामहासागर
आशिकलेउड़ादुल्हन... है।